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अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस 23 June 2020.(The Yuva Women's)

  अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस एक वैश्विक जागरूकता दिवस है जो 23 जून को प्रतिवर्ष होता है। यह दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2010 में मानव अधिकारों के उल्लंघन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था, जो कई देशों में विधवाओं को अपने पति की मृत्यु के बाद पीड़ित करते हैं। [1] अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस की स्थापना लूमबा फाउंडेशन द्वारा की गई थी [विधवा के मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए स्पष्टीकरण की आवश्यकता]। 23 जून का महत्व यह है कि 1954 में उस दिन , नींव के संस्थापक , भगवान लोम्बा की मां श्रीमती पुष्पा वती लोम्बा विधवा हो गई थीं।  [ 2] नींव के प्रमुख लक्ष्यों में से एक यह है कि इसे अदृश्य आपदा के रूप में वर्णित किया जाए। 2010 की एक पुस्तक , इनविजिबल , फॉरगोटेन सफ़रर्स: द प्लाइट ऑफ़ विडोज़ अराउंड द वर्ल्ड , का अनुमान है कि दुनिया भर में 245 मिलियन विधवाएँ हैं , जिनमें से 115 मिलियन गरीबी में रहती हैं और सामाजिक कलंक और आर्थिक अभाव से पूरी तरह पीड़ित हैं और उन्होंने अपने पति को खो दिया है।  [ 3] लूम्बा फाउंडेशन के जागरूकता अभियान के हिस्से के रूप में , यह अध्ययन संयुक्

Education is very important for every children , शिक्षा हर बच्चे के लिए बहुत महत्वपूर्ण है




दो निवाले कम खाए मगर अपने बच्चों को जरूर पढ़ाए !

एक सामान्य जिन्दगी जीने के लिए इंसान को रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा अगर किसी चीज की सबसे ज्यादा जरूरत होती है वह है ज्ञान। क्योंकि ज्ञान वह बैसाखी है जिसके सहारे इंसान, इंसानियत का तरीका सीखता है।
राजस्थानी भाषा के अनुसार ''मिनख पेट भरण रे पछे पेटी भरण री सोचे अर धापयोड़ो ऊंट ओड़ी गुडकाय देवे।'' अर्थात ज्ञान या इल्म के माध्यम से ही इंसान को यह मालूम होता हैं कि आज की बचत कल काम देगी इसलिए इंसान पेट भरने के बाद भविष्य के लिए इकट्ठा करने की सोचता है,
 
मगर ज्ञान नहीं होने के कारण ही जानवर पेट भर जाने के पश्चात सामने रखे उस चारे को भी पलट देता है जिससे उसका पेट भरता है। इस तरह ज्ञान के माध्यम से इंसान और जानवर के फर्क को समझा जा सकता है। इसी ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए कहा गया है

परिंदो को मंजिल मिलेगी यकीनन,
ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं।
अक्सर वो लोग खामोश रहते हैं,
जमाने में जिनके हुनर बोलते हैं।।

 

ज्ञान वह कवच है जो जीवन में आने वाली कठिनाइयों से इंसान की रक्षा करता है और उन कठिनाइयों का सामना करना सीखाता है। ज्ञान नहीं होने पर इंसान हीरों की खान में रहकर भी उनकी पहचान नहीं कर पाता है। इसलिए अपने इल्म को बढ़ाना आवश्यक है क्योंकि हीरे की कीमत को जौहरी ही पहचानता है।
 
आज के दौर की हर कौम के मुखिया के साथ-साथ परिवार के मुखिया के लिए यह जरूरी हैं कि वे खुद अगर अच्छी शिक्षा नहीं पा सके हैं तो कोई बात नहीं मगर अपने बच्चों को उन्हें पूरी कोशिश कर अच्छी शिक्षा देने के लिए आगे आना चाहिए। केवल सोचते रहने से कुछ नहीं होगा, आगे बढ़कर पहल भी करनी पड़ेगी। इस पहल को अंजाम देने के लिए चाहे घर में दो निवाले कम खाए मगर अपने बच्चों को जरूर पढ़ाए। क्योंकि
 

सोचने से कहां मिलते हैं तमन्नाओं के शहर,

चलना भी जरूरी है मंजिल को पाने के लिए।

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